अनुप्रिया वर्मा, मुंबई। नंदिता दास अपनी फिल्म मंटो को लेकर चर्चा में हैं. खास बात यह है कि नंदिता ने हमेशा ही सामाजिक मुद्दों पर खुल कर अपनी बात रखी है. हाल ही में जागरण डॉट कॉम से नंदिता ने रंगभेद के मुद्दे पर भी बातचीत की.
नंदिता कहती हैं कि मुझे खुशी है कि लड़कियों को मैं इंस्पायर करती हूं. उन लड़कियों को जो सिर्फ अपने रंग के कारण सोच बैठती हैं कि वह तो दुनिया में कदमताल करने के काबिल ही नहीं हैं. उन्हें नीचा दिखाया जाता है. वह कहती हैं कि मुझे याद है कि मैं अलीगढ़ यूनिवर्सिटी के समारोह में बात कर रही थीं, वहां एक लड़की ने मुझसे सवाल किया कि मैं इस रंग की होने के बावजूद इतनी कांफिडेंस कैसे दिखाती हूं. नंदिता कहती हैं कि मैं उस सवाल को सुन कर हिल गयी थी, कि कितनी लड़कियों का मनोबल सिर्फ उनके रंग के कारण ही टूट जाता होगा. वह सोचती होंगी कि वह काली हैं.
नंदिता कहती हैं कि मैं इसका श्रेय मैं अपने माता-पिता को देती हूं कि उन्होंने कभी मुझ पर कोई शक नहीं किया. कुछ भी थोपा नहीं. भेद नहीं किया. मुझे सोचने की आजादी दी. नंदिता आगे कहती हैं कि यह सच है कि काले रंग को भी फिल्म इंडस्ट्री में स्वीकारा जा रहा है. उस दौर में लोग हैरान थे. जिस इंडस्ट्री में सिर्फ गोरे लोग ही नजर आ रहे हैं. टीवी में, फिल्म में।
नंदिता कहती हैं कि मेरी स्कीन के 90 प्रतिशत लोग हैं लेकिन हमारी फिल्मों को देखो तो लगता है कि ऐसे ही लोग हैं. जैसे ये कैंपेन डार्क इज ब्यूटीफुल था. मैं उसे सपोर्ट करती हूं . नंदिता कहती हैं कि मैं इसके बारे में पहले भी बात करती थी लेकिन मुझे नहीं लगता था कि यह स्टैंड लेने वाला इश्यू हैं, क्योंकि उस वक्त तो मुझे लगता था कि औरतों के और भी मसले हैं, जिन पर बात हो. सेक्युअल एब्यूज और बाकी सब पर बात हो. स्कीन कलर के लिए मैंने मुद्दा जैसा नहीं सोचा था. उन्होंने कभी कॉम्पलेक्स नहीं दिया था लेकिन वह कहती हैं कि धीरे-धीरे जब मैंने बोलना शुरू किया तो लगा कि बाप रे, कितनी सारी लड़कियों को यह बात इंपैक्ट कर रही है. जिस तरह की कहानियां मेरे पास आयीं. सिर्फ रंग के कारण लड़कियां सुसाइड करने के लिए तैयार हो गयी थीं. मुझे लगा कि इसकी जरूरत है कि बात की जाये और मैंने बात करना शुरू किया. वह कहती हैं कि मैं मानती हूं कि अभिभावकों को इस तरह के मामले पर अपने बच्चों के साथ बातचीत करनी चाहिए . उन्हें जागरूक होने की सबसे ज्यादा जरूरत है.
नंदिता कहती हैं कि वे एक बच्चे की तरह कहेंगे, आपके नैन-नक्श अच्छे है. लेकिन खराब बात यह है कि आप काले हो. नंदिता कहती हैं कि मैं शुक्रगुजार हूं कि मेरे माता-पिता कभी ऐसे नहीं रहे. उन्होंने कभी मेरे साथ ऐसा कुछ नहीं किया. लेकिन दुख की बात है कि जब मैं बाहर काम करने आयी तो मेरे साथ रंगभेद हुआ. लेकिन इससे मैंने खुद को बदल नहीं लिया. मैं आज भी फेशियल नहीं कराती हूं. कभी क्रीम लेने गयी और मुझसे दुकानदार कह दे कि लीजिये, इसमें वाइटनिंग होगी, तो मैं वही उस क्रीम को छोड़ देती हूं. मुझे तो कई बार टैन निकालने वाली क्रीम दे देते हैं, मैं मना कर देती हूं.