नई दिल्ली (जेएनएन)। शिक्षा के अधिकार अधिनियम के तहत बच्चों को स्कूल की तरफ आकर्षित करने व भरपूर पोषण उपलब्ध कराने के लिए मिड-डे मील की व्यवस्था की गई है। दिल्ली के स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों को मिलने वाला मिड डे मील महज औपचारिकता पूरी करता नजर आ रहा है। इससे बच्चों का सिर्फ पेट भर रहा है, उन्हें भरपूर पोषण नहीं मिल पा रहा है। दिल्ली स्वास्थ्य सेवा महानिदेशालय ने स्कूल स्वास्थ्य योजना के अंतर्गत सरकारी स्कूलों में पढ़ रहे बच्चों में पोषण-कुपोषण की स्थिति जानने के लिए गत वर्ष एक अध्ययन किया था। तीन लाख से अधिक बच्चों को इसमें शामिल किया गया था।
रिपोर्ट बीते महीने ही जारी हुई, जिसके अनुसार सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले 40 फीसद से अधिक बच्चे कुपोषण के शिकार हैं। स्कूलों में मिड-डे मील के बाद भी बच्चों के कुपोषण की स्थिति को लेकर एक प्रिंसिपल कहते हैं कि इस अध्ययन पर सवाल खड़े नहीं किए जा सकते हैं, लेकिन इसके लिए सिर्फ मिड-डे मील को ही दोष नहीं दिया जा सकता हैं।
वहीं एक प्रधानाचार्य कहते हैं कि मिड-डे मील के सहारे बच्चों के कुपोषण से नहीं लड़ा जा सकता है। दिल्ली में ऐसे बच्चों की संख्या बहुत अधिक है, जो सुबह खाली पेट स्कूल आते हैं और मिड-डे मील से ही अपना पेट भरते हैं। स्कूलों में मिड-डे मील की पौष्टिकता को लेकर सरकारी विद्यालय शिक्षक संघ के महासचिव अजय वीर यादव कहते हैं कि इसी उम्र में बच्चों की वृद्धि और विकास होता है।
मिड-डे मील से बच्चों को उपयुक्त आहार नहीं मिल पा रहा है। इससे सिर्फ बच्चों का पेट भर रहा है। वे मिड-डे मील की व्यवस्था के तहत मिलने वाले भोजन से भी ऊब गए हैं। अजय कहते हैं कि सरकार ने दावा किया था कि वह मिड-डे मील में दूध और केले की व्यवस्था करेगी, लेकिन तीन साल बीतने के बाद भी इस घोषणा पर काम नहीं हुआ है। बच्चों को अगर स्वस्थ रखना है तो उन्हें पौष्टिक आहार व संतुलित भोजन उपलब्ध कराया जाए, जिसमें चना, दूध, केला भी शामिल हो।