चौरड़िया भवन में विराजित सुमति मुनि ने अपने प्रवचन में कहा कि गुस्सा हमारे अंदर भरा हुआ है, कोई आपकी मानता नही है तो उसमें उलझो मत। कषाय वृति के कारण अनन्त जन्म मरण किये।
मुनि श्री कहा कि वस्तु को अपनी नहीं माननी चाहिए।उस पर ममता, राग एवं अभिमान नहीं करें। वस्तु का दुरुपयोग नहीं करें, उनका स्वरूप नहीं बिगाडे, अयोग्य व्यक्ति को नहीं दे, वस्तु पर अपनी छाप नहीं लगानी है। वस्तु का अपनी जरूरत से ज्यादा संग्रह नहीं करे, यदि आपको वस्तु की जरूरत नहीं हो तो उपयोगार्थ दूसरों को दे देव। वस्तु की जरूरत नहीं हो तो उसका त्याग करें।
साध्वी ने कहा फरमाया अर्जुन मालागार जो 1141 व्यक्ति का हत्यारा था, सेठ सुदर्शन के सम्पर्क में आकर परमात्मा महावीर के पास पहुंचा तथा दीक्षा ग्रहण की। परमात्मा ने अर्जुन अणगार का कहा अर्जुन तुम सिर्फ सुनो, सब कुछ सहो, कुछ नहीं कहना। जो सबका सब कुछ सहता है, वह साधु, है। मैं सब को, सब कुछ सुनुंगा, कोई प्रतिक्रिया नहीं करूंगा। अर्जुन अनगार को पहले की बात सुनाकर उनकी हिलना, निंदा, पीटना आदि छः माह तक लगातार करते रहे। दीक्षा लेते ही जिनकी पूरी जिंदगी के लिए अभिग्रह पूर्वक तपस्या की कभी भी उन्होंने क्यू का प्रसन्न नहीं पूछा ।हर स्थिति को स्वीकार करूंगा। गोचरी लाते वक्त खून की धारा बहती थी। ये है मेरे कर्म, मैंने कर्म बांधे है। परमात्मा अर्जुन अणजार को कहते है कि मैने पूर्व भवों में प्रतिकार किया, सहन नहीं किया तो मुझे नरकादि दुर्गति भोगनी पड़ी।तुम प्रतिक्रिया या विरोध करोगे तो शुद्र कहलाओगे, प्रतिक्रिया में तुम अपना सब कुछ खो दोगे। साध्वी ने कहा कि जब हम गुस्सा करते है तो हमारी साधना, तपस्या आदि को खो देते हैं। एक बार गुस्सा करने से भूत, भविष्य व वर्तमान खराब हो जाता है
