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रुपये के कमजोर होने का कारण कच्चे तेल के बढ़ते दाम

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नई दिल्ली (आशीष सिंह)। श्रीराम कॉलेज ऑफ कॉमर्स, नई दिल्ली के अर्थशास्त्र विभाग के प्रो. अश्विनी कुमार ने कहा है कि रुपये की कीमत किसी भी वस्तु या सेवा की मांग और आपूर्ति पर निर्भर करती है। आयात और निर्यात का भी इस पर असर पड़ता है। हर देश के पास उस विदेशी मुद्रा का भंडार होता है, जिसमें वो लेन-देन करता है। विदेशी मुद्रा भंडार के घटने और बढ़ने से ही उस देश की मुद्रा की चाल तय होती है।

अमेरिकी डॉलर को वैश्विक रुतबा हासिल है और ज्यादातर देश किसी भी सेवा या वस्तु के एवज में उसका भुगतान डॉलर में ही करते हैं। किसी भी सामान की कीमत बढ़ने से बाजार में डॉलर की मांग बढ़ती है। डॉलर की मांग अधिक होने से रुपये की कीमत में गिरावट नज़र आती है। रुपये के लगातार कमजोर होने का सबसे बड़ा कारण कच्चे तेल के बढ़ते दाम हैं।

प्रो. कुमार ने सोमवार को दैनिक जागरण के नोएडा कार्यालय में आयोजित में ‘गिरता रुपया कितना हानिकारक’ विषय पर अपने विचार रखे।

उन्होंने कहा कि भारत कच्चे तेल के बड़े आयातक देशों में से एक है। कच्चे तेल के दाम साढ़े तीन साल के उच्चतम स्तर पर हैं और 75 डॉलर प्रति बैरल के आसपास पहुंच गए हैं। भारत ज्यादा तेल आयात करता है और इसका भुगतान भी उसे डॉलर में करना पड़ता है। आरबीआइ ने पहली तिमाही में राजकोषीय घाटे का अनुमान लगभग 32 हजार करोड़ रुपये लगाया है जिसमें 16 हजार करोड़ रुपये से अधिक का घाटा सिर्फ तेल का आयात होने से हुआ है। संयुक्त राज्य अमेरिका में ब्याज की दरें बढ़ने से निवेशकों का ध्यान उसकी तरफ आकर्षित हुआ है जिससे निवेशक भारत में निवेश ना करके अमेरिका की तरफ जा रहे हैं।

उन्होंने यह भी कहा कि रुपये में गिरावट के लिए अमेरिका की संकुचन मौद्रिक नीति भी काफी अहम है जिसमें ईरान जैसे तेल निर्यातक देश से व्यापार करने पर अमेरिका अपने देश में उस देश को अपने यहां व्यापार और सेवाओं पर प्रतिबंध लगाने की बात कहता है। इसे जिओ पॉलिटिक्स का भी नाम दिया गया है।

उन्होंने कहा कि डॉलर के बढ़ते वर्चस्व से बचाव में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआइ) भी काफी प्रभावी हो सकता है। एफडीआइ के आने से देश में विदेशी मुद्रा का आगमन होगा जिससे देश में विदेशी मुद्रा मतलब डॉलर का संचय अधिक होगा। उन्होंने 2017 में एशिया में हुए एफडीआइ की जानकारी भी दी। इसके मुताबिक सर्वाधिक 136 बिलियन डॉलर का निवेश चीन में हुआ, जबकि 100 बिलियन डॉलर हांगकांग, 62 बिलियन डॉलर मलेशिया और 40 बिलियन डॉलर का निवेश भारत में किया गया।

रुपये का गिरना भी है फायदेमंद

रुपये का कमजोर होना हमारे लिए फायदे की बात भी है। सुनने में यह बात भले ही अटपटी लगे, लेकिन यह सच है। प्रो. कुमार कहते हैं कि रुपये के गिरने से आयात में कमी होती है और निर्यात को बढ़ावा मिलता है, जिसके कारण निर्यातकों की चांदी हो जाती है। उनको भुगतान डॉलर में मिलता है जो हमारी अर्थव्यवस्था को ताकत देता है।

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