राउरकेला, मुकेश सिन्हा। बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) से आइआइटी बीटेक करने वाले मानस
नंद ओडिशा, झारखंड, कर्नाटक और उत्तराखंड के वनवासियों को वन संपदा के जरिए आर्थिक समृद्धि की नई राह दिखा रहे हैं। रीठा से केमिकल रहित डिटरजेंट पाउडर बनाने वाले मानस ने चार राज्यों के आदिवासियों के लिए रोजगार का दरवाजा खोल दिया है। यह उत्पाद वैश्विक बाजार तक पहुंच बना चुका है।
ओडिशा के संबलपुर शहर के नंद पाड़ा के रहने वाले मानस नंद ने इस डिटरजेंट कंपनी का नाम बबलनट वाश रखा है। बेंगलुरु में उत्पादन यूनिट है। बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से आइआइटी बीटेक करने के बाद मानस नंद पांच वर्षों तक दिल्ली और मुंबई में बतौर फाइनेंशियल एनालिस्ट काम कर चुके हैं। बाद में उन्होंने एक एनजीओ के लिए काम करना शुरू किया। तब झारखंड के आदिवासियों के संपर्क में आए। इसके
बाद मानस उच्च शिक्षा को आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी चले गए।
यूरोपीय देशों में देखा कि कपड़े धोने के लिए केमिकल युक्त डिटरजेंट इस्तेमाल हो रहा है। चूंकि यह सेहत के लिए खतरनाक था, इसलिए 2013 में कई देशों में इस पर पाबंदी लगा दी गई। तब मानस के मन में भारतीय जंगलों में मिलने वाली चीजों का ख्याल आया। इन्हीं में से एक था- रीठा। शोध के बाद उन्होंने
रीठा के साथ अन्य वन संपदा मिलाकर केमिकल रहित डिटरजेंट पावडर बनाया।
स्वदेश लौटने पर बबलनट वॉश के नाम से उत्पादन शुरू कर दिया। मानस कहते हैं, मैं झारखंड के वनांचलों में गरीबी को करीब से देख-समझ चुका था। वहां जुलाई से दिसंबर तक लोग खेती करते थे। जनवरी से जून तक बेरोजगार रहते थे। ऐसे में उनके लिए रोजगार का रास्ता खोला। वनवासियों से रीठा व अन्य वनोपज खरीदने लगा। इससे उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ। आज उनका उत्पाद भारत के अलावा श्रीलंका, यूनाइटेड किंगडम व अन्य देशों में निर्यात हो रहा है।
मानस बताते हैं कि भारत में जो भी बड़ी कंपनियां डिटरजेंट बना रही हैं, वे इस बात का कभी जिक्र नहीं करती कि उनके उत्पाद में कौन कौन से घटक हैं। क्या दुष्परिणाम होता है। झाग बनाने के लिए जिन रसायनों का इस्तेमाल होता है, वे एलर्जी के कारक हैं। दूसरी समस्या नदियों व जलस्नोतों में गंदगी का है।
मानस के अनुसार, बेंगलुरु के बेलादुर लेक में बीस फुट झाग जमी रहती है। इसकी बड़ी वजह डिटरजेंट है। रिसर्च के दौरान विभिन्न शहरों में घूमकर यह पाया कि सर्वाधिक प्रभावित महानगर हैं।
किसी तरह का कोई रेग्यूलेशन नहीं
विदेश की बात करें तो यूरोपीय देशों में 2013 में कपड़े धोने वाले डिटरजेंट व 2017 में बर्तन व हाथ धोने
वाले डिटरजेंट में सल्फेट को बैन कर दिया गया। कोई बड़ा प्लांट न लगाकर इस उत्पादन को सामुदायिक
स्तर पर विकसित करना चाहता हूं।