नई दिल्ली (जेएनएन)। इंटरनेट आज के दौर में हमारी जिंदगी का एक ऐसा हिस्सा बन गया है, जसे अलग करना नामुमकिन सा लगता है। कंप्यूटर पर तेजी से चलती उंगलियां और सामने कंप्यूपर की स्क्रीन पर टाइप होता https://www.xyz.com जैसे कोई भी यूआरएल। इस सबके बिना हमें अपनी जिंदगी अधूरी सी लगने लगती है। लेकिन क्या आपने सोचा है कि यूआरएल इतना मुश्किल क्यों होता है? इसमें कोलन (:) और डबल स्लैश (//) क्यों होते हैं? क्या इन्हें हटाया नहीं जा सकता? क्या इनके बिना काम नहीं चल सकता?
बात करते हैं हैं डबल स्लैश की। अगल आपको पूरा यूआरएल टाइप करना पड़े तो https:// टाइप करने के बाद भी यूआरएल में कई जगह स्लैश लगाने पड़ते हैं। बार-बार ऐसा करने से यूजर्स को परेशानी होती है। यह हम नहीं कह रहे। जिस शख्स ने इसका अविष्कार किया था उन्होंने ही यह माना है। एक बार तो उन्होंने इसके लिए माफी तक मांगी थी और इसे एक गलती बताया था। उस एक गलती की वजह से आज भी आपको यूआरएल में दो स्लैश का इस्तेमाल करना पड़ता है। जानते हैं वो कौन हैं जिन्होंने यह गलती की थी।
ली की बदौलत फैला इंटरनेट का जाल
जी हां 8 जून 1955 को लंदन में जन्मे कंप्यूटर वैज्ञानिक टिम बर्नर्स ली की वजह से ही आज इंटरनेट का जाल पूरी दुनिया में फैला हुआ है। ली ही वह शख्स भी हैं जिन्हें वर्ल्ड वाइड वेब यानी www का निर्माता कहा जाता है और यूआरएल में दो स्लैश का प्रावधान भी उन्होंने ही दिया है। अब सवाल है कि इतना बड़ा कंप्यूटर वैज्ञानिक ऐसी गलती कैसे कर सकता है, जिसके लिए उन्हें बाद में माफी मांगनी पड़े। तो चलिए जानते हैं इसके पीछे की कहानी…
क्यों होता हैं स्लैश का इस्तेमाल
वर्ल्ड वाइड वेब (world wide web) के उत्पत्ति की शुरुआत 1980 के दशक में हुई थी। 1989-90 में पहली बार कंप्यूटर वैज्ञानिक टिम बर्नर्स ली ने वर्ल्ड वाइड वेब का आइडिया दिया था। उस समय टिम को अंदाजा भी नहीं था कि वर्ल्ड वाइड वेब इतना बड़ा आकार ले लेगा। ली ने वैज्ञानिकों के संवाद करने में मदद करने के लिए वेब की शुरुआत की थी। वेब एड्रेस में स्लैश का इस्तेमाल किसी वेबसाइट के यूआरएल को अलग से प्रदर्शित करने के लिए किया गया था। इससे उस वेबसाइट को एक अलग पहचान मिलती है।