राका यहां ‘कंटीन्यूड मेडिकल एजुकेशन’ (सीएमई) में किडनी प्रत्यारोपण पर बोल रही थीं। इसका आयोजन आईवी हॉस्पिटल ने मोहाली में इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए), धर्मशाला के सहयोग से किया था। कौशल ने कहा कि एक समय था जब ऐसे किडनी प्रत्यारोपण को उच्च अस्वीकार्यता के कारण असंभव और उच्च जोखिम भरा माना जाता था, जिसके कारण प्रत्यारोपित अंग एंडीबॉडी द्वारा अस्वीकृत करने के बाद निष्क्रिय हो जाता है।
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किडनी प्रत्यारोपण सर्जन अविनाश श्रीवास्तव ने कहा कि ‘एबीओ (ए, बी, एबी, ओ रक्त समूह) बेमेल किडनी प्रत्यारोपण’ ऐसे मरीजों के लिए वरदान है, क्योंकि इससे उन्हें ज्यादा इंतजार नहीं करना पड़ता। उन्होंने कहा, हम पिछले तीन साल से सफल ‘एबीओ बेमेल किडनी प्रत्यारोपण’ कर रहे हैं। ऐसे प्रत्यारोपण करने के लिए रक्त में निचली एंडीबॉडी का इलाज कर दाता की किडनी की अस्वीकार्यता के खतरे को कम किया जाता है। उन्होंने कहा, ऐसे ‘एबीओ बेमेल प्रत्यारोपण’ के परिणाम सामान्य प्रत्यारोपण जैसे ही होते हैं, जिसमें लगभग 95 फीसदी किडनी पहले साल के अंत तक काम करने लगती है।
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