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क्रोध हमें उग्रवादी बनाता है तो शांति देवदूत: श्री चन्द्रप्रभ

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जोधपुर, 30 जनवरी। राष्ट्र-संत श्री चन्द्रप्रभ ने कहा कि शांति के वातावरण में आप क्रोध करते हैं, तो दुनिया की नज़र में आप उग्रवादी कहलाएँगे, वहीं यदि क्रोध के वातावरण मेें भी आप शांत रहेंगे, तो आप किसी देवदूत की तरह पहचाने जाएँगे। गुस्सा करने से पहले सौ बार सोचिए। इससे लाभ नहीं, नुकसान ही होना है। जो काम रूमाल से निपट सकता है, भला उसके लिए रिवॉल्वर का उपयोग क्यों करते हो?
कायलाना रोड स्थित संबोधि धाम में क्रोध के सौ नुकसान विषय पर संबोधित करते हुए राष्ट्र-संत श्री चन्द्रप्रभ ने कहा कि गुस्सा हमारा मुँह खोल देता है, पर आँखें बंद कर देता है। गुस्सा पागलपन से शुरू होता है और प्रायश्चित पर पूरा होता है। गुस्सा आ भी जाए तब भी वाणी पर नियंत्रण रखने की कोशिश कीजिए, नहीं तो आप हानि उठाएँगे। याद रखिए, माँ के पेट से निकला बच्चा और मुँह से निकले बोल वापस कभी अंदर नहीं जाते। अगर गुस्सा करना ही है तो किसी को सुधारने के लिए कीजिए। अहंकार जताने और किसी को नीचा दिखाने के लिए गुस्सा मत कीजिए। गुस्सा इंसान को बर्बादी की तरफ ले जाता है। गुस्से में अगर नौकरी छोड़ोगे तो करियर बर्बाद होगा, मोबाइल तोड़ोगे तो धन बर्बाद होगा, परीक्षा न दोगे तो वर्ष बर्बाद होगा और पत्नी पर चिल्लाओगे तो रिश्ता बर्बाद होगा।
संतश्री ने कहा कि क्रोध के वातावरण में भी मुस्कान को तवज्जो दीजिए। पत्नी कभी गुस्से में कहे कि मैं पीहर चली जाऊँगी तो बुरा मत मानिए, उसे शूटकेस तैयार करके दीजिए और कहिए – तू पीहर चली जा, मैं ससुराल चला जाऊँगा और बच्चों को ननिहाल भेज दूँगा, पर अपन रहेंगे तो साथ-साथ। गुस्से को जीतने के लिए क्रोध के वातावरण से दूर रहिए। मौन का अभ्यास बढ़ाइए, सकारात्मक व्यवहार कीजिए, विनोदी स्वभाव के मालिक बनिए, सप्ताह में एक दिन क्रोध न करने का उपवास अवश्य कीजिए।
संत प्रवर ने अपने प्रवचन में कहा कि माफी माँगने का मतलब यह नहीं कि आप गलत हैं और सामने वाला सही है, वरन इसका मतलब यह है कि आप रिश्ता निभाना जानते हैं। क्षमा के बड़े अनूठे लाभ हैं। इससे मानसिक शांति, रिश्तों में मिठास, कार्य-क्षमता में बढ़ोतरी, बेहतर नज़रिया, प्रभावी भाषा और व्यक्तित्व विनम्र बनता है। याद रखिए, अगर हम किसी की एक गलती माफ करेंगे, तो भगवान हमारी सौ गलतियाँ माफ करेंगे। संकल्प करें और स्वभाव बदलें। आखिर क्रोध के कीचड़ में कब तक पडे़ रहेंगे। न खुद को जलने दीजिए और न दूसरों को। सॉरी कहिए और टूटे रिश्तों को फिर से साँध लीजिए। भला जब एक सॉरी कहने से बात सँवर सकती है, तो बेफिजूल टेंशन क्यों ढोया जाए।

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