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बुढ़ापे के प्रति मैत्री भाव रहे सुमति मुनि

चौरड़िया भवन में विराजित सुमति मुनि ने फरमाया कि हमारा बुढ़ापे के प्रति मैत्रीभाव रहे। शरीर के बुढ़ापे को अपना मत समझो। हमको अगली गति का लक्ष्य निर्धारित करना है। बूढ़े व्यक्तियों में गहराई, अनुभव होता है, बुजुर्ग व्यक्ति सभा के लिए शोभायमान रहता है। बुढ़ापे में परेशानी आने का मुख्य कारण  मान है। मान रखने से हड्डियों में मन में अकड़ आ जाती है। बाहरी साधनों का जो उपयोग नहीं लेता है उसको बुढ़ापा परेशान नहीं करता है।
वृक्ष का पता जो पीला पड़ जाता है व कभी भी गिर सकता है, हरा-भरा पता भी वृक्ष से किसी भी समय अलग हो सकता है। आयुष्य की डोर कब टूट  जाती है यह मालूम नहीं पड़ता है। मुनिश्री ने कहा युद्ध के मैदान में एक सैनिक विजय की आशा रखता है लेकिन एक सैनिक यह भावना करता है सद्बुद्धि आ जाये, दोनों पक्ष जीत जाय, सभी सुरक्षित रहे, खून खराबा नहीं हो। मैत्री भाव रखने से आंतरिक क्रिया जागृत होती है। हमारे शरीर रूपी मंदिर में जीवित परमात्मा विराजमान है।आत्मा रूपी कुशल ड्राइवर  के सहयोग इस जर्जर शरीर से भी हम मोक्ष तक पहुंच सकता है। साध्वी ने कहा मैत्री भाव रखने से आत्मा से जुड़ सकते है, प्रमोद‌भाव रख कर मैत्री सुगंध फैलाये, करुणा भाव रखकर दुःखी व्यक्ति का दुख देखकर पिघल जाता है व मध्यस्थता भाव से डॉक्टर की तरह रोगी का इलाज करना उसमें उलझना नहीं है। व्रतों, धर्म क्रिया का उत्साह से पालन नहीं करने का कारण हमारे सत्व में कमी है। शरीर में कोई रोग नहीं हो तो भी सत्व के कारण कमजोरी लगती है। संघ अध्यक्ष देवराज बोहरा एवं मंत्री माणक ललवानी ने बताया कि आज हेमन्त कांकरिया ने 8, श्रीमती सांखला ने 15, मंजू गोगड़ ने 16 की तपस्या के पचक्खाण ग्रहण किये। आज छत्तीसगढ़ से लालवानी परिवार व चेन्नई से खाटोड़ परिवार गुरु दर्शन के लिए आये। भीष्म-प्रतिज्ञा धारी आचार्य सम्राट जयमल जी म सा की 318 वी जन्म जयंती त्याग तपस्या के साथ मनायी जायेगी।

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