भाद्रपद से विचित्र रिश्ता
पंडित दीपक पांडे ने बताया है कि महाभारत काल से पूर्व भाद्रपद को हिंदी कैलेंडर के अनुसार अच्छा महीना नहीं माना जाता था। इसी कारण इस महीने में शुभ कार्य जैसे ग्रह प्रवेश आैर शादी विवाह जैसे शुभ कार्य नहीं होते परंतु श्री कृष्ण जन्माष्टमी आैर इस माह की गणेश चर्तुथी आैर गणेशोत्सव के कारण ये शुद्घ हुआ आैर इसका महत्व बढ़ा। इसके साथ जन्माष्टमी को अबूझ मुहूर्त, यानि जिस पर बिना पत्रा विचारे, शुभ कार्य किया जा सके माना जाता है। श्री कृष्ण के लौकिक पिता वसुदेव को विशुद्घ चित्त आैर माता देवकी को निष्काम बुद्घि का प्रतीक माना जाता है, जिनके मिलन से भगवान अवतरित होते हैं।
आठ का अदभुद संयोग
श्री कृष्ण के जीवन में आठ के अंक का अनोखा संयोग हैं। पुराणों अनुसार वे विष्णु के आठवें अवतार के रूप में, आठवें मनु वैवस्वत के मन्वंतर के अट्ठाईसवें द्वापर में श्रीकृष्ण के रूप में देवकी के गर्भ से आठवें पुत्र के रूप में, अष्टमी तिथि को मथुरा के कारागार में अवतरित हुए थे। उनका जन्म भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की रात्रि के सात मुहूर्त निकलने के बाद आठवें मुहूर्त में हुआ। तब रोहिणी नक्षत्र तथा अष्टमी तिथि थी जिसके संयोग से जयंती नामक योग में लगभग 3112 ईसा पूर्व यानि वर्तमान से 5125 वर्ष पूर्व, को हुआ हुआ था।
शून्य काल आैर सब आठ के अंक में
ज्योतिषियों अनुसार रात 12 बजे उस वक्त शून्य काल था। कृष्ण जन्म के दौरान आठ का जो संयोग बना वो वाकर्इ रहस्यपूर्ण है। जैसे पौराणिक कथाआें के अनुसार कृष्ण की आठ पत्नियां थी। जिनके नाम इस प्रकार थे, रुक्मणि, जाम्बवन्ती, सत्यभामा, कालिन्दी, मित्रबिन्दा, सत्या, भद्रा और लक्ष्मणा। आठ अंक का उनके जीवन में आैर भी महत्व रहा है। राधा, ललिता आदि उनकी प्रेमिकाएं थीं। उक्त सभी को सखियां भी कहा जाता है। राधा की कुछ सखियां भी कृष्ण से प्रेम करती थीं जो आठ ही हैं- चित्रा, सुदेवी, ललिता, विशाखा, चम्पकलता, तुंगविद्या, इन्दुलेखा, और सुदेवी। ब्रह्मवैवर्त्त पुराण अनुसार भी कृष्ण की प्रेमिकाएं भी आठ ही थीं जिनके नाम हैं- चन्द्रावली, श्यामा, शैव्या, पद्या, राधा, ललिता, विशाखा तथा भद्रा। एेसा माना जाता है कि ललिता नाम की प्रेमिका को मोक्ष नहीं मिल पाया था, आैर वही बाद में मीरा के नाम से जन्मी थी।