भविष्य में रक्षा सहयोगी के रूप में क्या अमेरिका ले पाएगा रूस की जगह, बड़ा सवाल
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। अमेरिका से भारत के मजबूत होते रिश्ते और रूस के करीब आते चीन और पाकिस्तान के मायने आज पूरा विश्व समझ रहा है। इसका सीधा सा अर्थ है कि भारत अब रूस से अधिक तवज्जो अमेरिका को दे रहा है और भविष्य में अमेरिका रूस से अधिक रणनीतिक साझेदार हो सकता है। जानकारों की मानें तो भारत ने इस बाबत सही समय पर सही निर्णय लिया है। आज भारत को अमेरिका और उसकी तकनीक की ज्यादा दरकारा है। लेकिन इसके इतर दूसरा सच यह भी है कि भारत रूस को किसी भी सूरत से पूरी तरह से दरकिनार नहीं कर सकता है। न ही भारत रूस की कीमत पर अमेरिका को अपने इतना करीब लाना चाहता है। यह राजनीतिक और कूटनीतिक दृष्टि से भी काफी अहम है। लेकिन इन सभी के बीच एक बड़ा सवाल यह भी है कि क्या अमेरिका रूस की जगह ले पाएगा।
एस-400 मिसाइल सिस्टम
ऐसा इसलिए भी कहा जा रहा है कि भारत ने रूस के साथ एस-400 मिसाइल डिफेंस सिस्टम का सौदा किया हुआ है। हालांकि इस सौदे पर अमेरिका काफी समय से अपनी नाराजगी व्यक्त कर चुका है। अमेरिका ने रूस पर कई तरह के प्रतिबंध लगा रखे हैं। साथ ही उसने यह भी धमकी दी है कि यदि रूस से इस तरह का कोई भी सौदा होता है तो वह संबंधित देश पर भी प्रतिबंध लगाने से नहीं हिचकिचाएगा। लेकिन इसके बाद भी भारत ने इस सौदे पर आगे बढ़ने का फैसला किया है। इस सौदे को लेकर सितंबर 13-14 को मास्को में स्वराज और रूस के उप प्रधान मंत्री युरी बोरिसोव की अध्यक्षता में सरकारी आयोग की बैठक होनी है। माना जा रहा है कि इस बैठक के दौरान इस मिसाइल सिस्टम पर भी बात होगी। अगर एस 400 खरीदने के प्रस्ताव पर मुहर लग जाती है तो यह हाल में भारत और रूस के बीच पहला बड़ा सौदा होगा। स्वराज की इस यात्रा के बाद मास्को में मोदी-पुतिन की भी बैठक होगी।
बदलता राजनीतिक परिवेष
बहरहाल, इसके बाद भी दोनों ही देश बदलते राजनीतिक परिवेष में अपने नए साझेदार नए मोर्चों पर डटे रहने के लिए तलाश रहे हैं। लिहाजा कहा जा सकता है कि भले ही भारत रणनीतिक मोर्चों पर अब रूस से दूर हो रहा है लेकिन उसके पास में कई दूसरे विकल्प भी हैं जिससे वह रूस का बड़ा साझेदार बना रह सकता है। इसमें सुरक्षा के इतर कृषि समेत दूसरे कई बड़े क्षेत्र हैं। आपको यहां पर ये भी बता दें कि मई में दोनों देशों के राष्ट्राध्यक्षों ने शोची में मुलाकात की थी। यहां पर ये भी ध्यान में रखने वाली बात है कि रूस वर्षों से भारत का रणनीतिक साझेदार रहा है और साथ ही हमारी सुरक्षा की रीढ़ की हड्डी रहा है। मौजूदा समय में रूस से सुरक्षा से इतर कृषि क्षेत्र की यदि बात करें तो भारत की जरूरत के हिसाब से रूस में अनाज का उत्पादन किया जाएगा। हालांकि इसी तरह का समझौता रूस ने चीन के साथ भी किया हुआ है। दूसरा सबसे बड़ा रूस से गैस का इंपोर्ट बढ़ाना है। इस बाबत दोनों राष्ट्राध्यक्षों के बीच अक्टूबर, 2016 में शुरुआती बात हुई थी। इसमें रूस से भारत तक गैस पाइप लाइन बिछाने की योजना भी शामिल है।
रूस से निर्भरता घटी
रूस और भारत के रिश्तों को यदि समझना है तो दो दशक पहले का रुख करना बेहद जरूरी होगा। दो दशक पहले हम अपने 80 फीसद रक्षा उपकरण रूस से लेते थे, जबकि अमेरिका के साथ हमारा इस तरह का कोई करार नहीं था। लेकिन रूस से अब रक्षा सहयोग यह घट कर 60 फीसद तक रह गया है। वहीं अमेरिका से करीब 10 अरब डॉलर से ज्यादा का रक्षा कारोबार हो रहा है। यहां पर ये भी ध्यान में रखना जरूरी है कि बदलते राजनीतिक परिवेष में जहां भारत ने रूस के साथ सहयोग को कम किया है वहीं अमेरिका समेत इजरायल, दक्षिण कोरिया, फ्रांस से रक्षा सहयोग को बढ़ाया है। फ्रांस से हुई राफेल डील इसका ही एक प्रमाण है।
अमेरिका-भारत की टू प्लस टू वार्ता
आपको बता दें कि हाल ही में भारत और अमेरिका के बीच टू प्लस टू वार्ता हुई थी। जिसके बाद यह माना जा रहा है कि अगले तीन से चार दशकों में अमेरिका भारत का सबसे बड़ा रक्षा सहयोगी राष्ट्र होगा। वैसे भी हाल के वषों में भारत ने जितने नए रक्षा सौदे अमेरिका के साथ किए हैं उनसे काफी कम रूस से किए हैं। मौजूदा समय में भारत को अपनी सुरक्षा के लिए बड़े पैमाने पर हथियारों और आधुनिक रक्षा तकनीक की जरूरत है। भारत को अपनी वायु सेना और नौ सेना के लिए हर तरह के वाहक जहाज की जरूरत है, जिसे सिर्फ अमेरिका पूरा कर सकता है।
अमेरिकी समर्थन से करीब पहुंचा भारत
जहां तक रूस के भारत से दूर जाने और अमेरिका के पास आने की बात है तो हम आपको ये भी बता दें कि जिस वक्त अमेरिका पाकिस्तान के करीब था, उस वक्त भारत से बिल्कुल अलग था। लेकिन मौजूदा समय में पाकिस्तान से बढ़ती अमेरिका की दूरियों ने भारत को उसके करीब पहुंचाने में काफी मदद की है। इसके अलावा अमेरिकी सरकारों ने जिस तरह से पाकिस्तान का सच पूरी दुनिया के सामने रखा है उससे भी भारत का विश्वास अमेरिका पर बढ़ा है। इतना ही नहीं संयुक्त राष्ट्र में स्थाई सीट का मसला हो या फिर न्यूक्लियर सप्लाई ग्रुप का हिस्सा होने का मसला, सभी पर अमेरका ने भारत का खुलकर समर्थन किया है। इन सभी ने भी भारत को अमेरिका के करीब पहुंचाने का काम किया है। ऑब्जरवर रिसर्च फाउंडेशन के प्रोफेसर हर्ष वी पंत का मानना है कि भारत ने कूटनीति के तहत सही समय पर सही फैसला लिया है और अमेरिका से सहयोग बढ़ाया है। उनका यह भी कहना है कि चीन और पाकिस्तान से रूस की नजदीकी की वजह से भारत ने अमेरिका से अपना सहयोग बढ़ाया है। यह रणनीतिक दृष्टि से काफी अहम है मौजूदा जरूरत भी है। उनका यह भी कहना है कि भविष्य में यह सहयोग और अधिक मजबूत होगा।