- मान-मनुहार के बाद गवर माता ससुराल लौटी
जोधपुर (कार्यालय संवाददाता)। पीहर में एक सप्ताह तक मान-मनुहार व पूजन के बाद रविवार को गणगौर माता फिर से ससुराल चली गई। पीहर वाले उन्हें भोळावणी के मेले के बाद ससुराल पहुंचाने गए। वहीं शहर में भोळावणी के मेले के साथ सिटी पुलिस फगड़ा घुड़ला कमेटी की ओर से फगड़ा घुड़ला मेला भी आयोजित किया गया। इस दौरान झांकियों सहित शोभायात्रा निकाली गई। इस शोभायात्रा को देखने शहरवासी उमड़ पड़े।।
लोक परम्पराओं का अनूठा मेला फगड़ा घुड़ला रविवार रात को आयोजित किया गया। जोधपुर में घुड़ला लेकर अमूमन महिलाएं ही निकलती है लेकिन इस मेले में पुरुष महिला का वेष धारण कर सिर पर घुड़ला लेकर निकलते है। शहर में गणगौर पूजन को लेकर निकाला गया एेतिहासिक फगड़ा घुड़ला मेला रविवार रात को ओलंपिक रोड से निकाला गया। सिटी पुलिस स्थित फगड़ा-घुड़ला कमेटी कमेटी के अध्यक्ष भगवतीलाल शर्मा व सचिव रमेश गांधी ने बताया कि ओलंपिक रोड से शोभायात्रा प्रारंभ हुई। शोभायात्रा जालोरी गेट, खाण्डाफलसा, आडा बाजार, सर्राफा बाजार, मिर्ची बाजार, कटला बाजार, घंटाघर होते हुए तुरजी का झालरा पहुंचा जहां पारंपरिक एवं विधिवत रूप से घुड़ळे का विसर्जन किया गया। शोभायात्रा में महिला के वेश में राम सोनी पूरे रास्ते गहनों से लकदक होकर घुडला उठाए चल रहा था। मेले में धार्मिक, एेतिहासिक व मनोरंजन करने वाली करीब दो दर्जन झांकियां शामिल हुई। गाजे-बाजों के साथ निकाली गई इस शोभायात्रा व गणगौर कमेटी के पदाधिकारियों का जगह-जगह साफा पहनाकर स्वागत किया गया। इसी तरह खांडा फलसा गणगौर समिति के तत्वावधान में भी भोळावणी का मेला रविवार को आयोजित किया गया। वहीं आडा बाजार कुम्हारिया कुआं गणगौर कमेटी की ओर से भोळावणी की शोभायात्रा बालवाड़ी स्कूल से रवाना हुई। समिति के सचिव महेश मंत्री ने बताया कि यह यात्रा सिरे बाजार होते हुए देर रात घंटाघर पहुंची।
गवर माता को पीहर से ससुराल भेजने की रस्म भोळावणी के दिन शहर के पवित्र जलाशयों पर गवर माता की प्रतिमाओं को जल अर्पण किया गया। शहर के रानीसर जलाशय, गुलाब सागर, तुरजी का झालरा पर बड़ी संख्या में गवर पूजने वाली तीजणियां गवर-ईसर प्रतिमाओं के संग पहुंची। घुड़ला विसर्जन एवम गणगोर माता को जल अर्पण कर पीहर से ससुराल भेजने की रस्म निभाई गई।
राज गणगौर की शाही सवारी निकाली : किले के नागणेच्या माताजी के मंदिर में श्री राज गणगौर की सवारी हमेशा की तरह खासे में सज-धज कर ढोल-ढमाके के साथ फतेहपोल से निकाली गई। राज गणगौर सवारी में पूर्व नरेश गजसिंह सहित राजपरिवार के अनेक सदस्य शामिल हुए।
बाड़ी के महलों में राजपुरोहित व राज व्यास ने परंपरागत श्री गणगौर माताजी की पूजा करके महलों से शाम छह बजे विदा किया। विदा करने से पहले राजपरिवार से संबंधित महिलाएं, अतिथियों ने दोनों गणगौर प्रतिमाओं की परिक्रमा व पूजा अर्चना की। हेमलता राज्ये की गणगौर बाड़ी के महल में विराजमान रही, जहां घूमर नृत्य, गणगौर गीत गायन के साथ राज गणगौर की सवारी को राणीसर तालाब से जल अर्पण एवं पूजन हेतु खासे में विदा किया गया। खासे को पूरबियों की वेशभूषा में सफेद जामा केसरिया पगड़ी और कमरबंद बांधे हुए पालकी वाहक खासे को कंधे पर उठा कर चल रहे थे। खासे लवाजमें के प्रतीक किरणिया, त्रिशूल, थम्भ, महिमरातिब, छंवर, सोने चांदी की छडिय़ा धारण किए हुए छड़ीबरदार और जलूस के अग्र भाग में राज अनुष्ठान घोड़े पर मारवाड़ का पचरंग का निशान फहराया गया।
जुलूस में राजगणगौर के खासे के आगे गजसिंह एवं आमंत्रित राजपरिवार के सदस्य महाराज, रावराजा, सिरायत, मुत्सदी, राजवेदिया, राजव्यास, दानाध्यक्ष, राजजोशी इत्यादि पारंपरिक वेशभूषा में चल रहे थे। उनके पीछे मेहरानगढ़ बैण्ड राजस्थानी गीतों की धुने बजाते हुए चल रहा था। फतेहपोल पर गणेश पूजन के बाद चांद बावड़ी मौहल्ला समिति, गुंदी का मोहल्ला, चैनेश्वर व्यायामशाला के दलपति, पार्षद एवं मौहल्ला समिति के प्रतिनिधियों ने सवारी की अगवानी कर स्वागत किया। हमेशा की तरह बिछायत एवं सुरक्षा प्रबंध ट्रस्ट की तरफ से किए गए। पंडित ने गजसिंह के हाथों से गणगौर माता को जल अर्पण एवं पूजन करवाया। साथ ही अन्य मोहल्लों से आई ईसर गणगौरों का राजपरिवार द्वारा स्वागत किया गया।