क्लीनिकल एस्टेब्लिशमेंट एक्ट के खिलाफ निजी अस्पतालों ने खोला मोर्चा
देहरादून, [जेएनएन]: प्रदेशभर में मरीजों पर दोहरी मार पड़ने वाली है। निजी व सरकारी डॉक्टर अलग-अलग मसलों पर सरकार से दो-दो हाथ करने को तैयार हैं। निजी चिकित्सकों ने क्लीनिकल एस्टेब्लिशमेंट एक्ट पर मोर्चा खोल दिया है। आइएमए की प्रदेश शाखा ने यह निर्णय लिया है कि सभी निजी अस्पताल अपने मरीजों को 13 सितंबर से पहले डिस्चार्ज कर देंगे। 15 सितंबर से उन्होंने अनिश्चितकालीन हड़ताल की चेतावनी दी है।
उधर, सरकारी अस्पतालों में कार्यरत 113 विशेषज्ञ चिकित्सकों ने दस सितम्बर से विशेषज्ञ सेवा नहीं देने का एलान किया है। उत्तर प्रदेश के मेडिकल कॉलेजों से प्रशिक्षण प्राप्त इन चिकित्सकों का पीजी डिप्लोमा सवालों के घेरे में है। निजी व सरकारी चिकित्सकों के इन तेवर के कारण मरीजों पर आफत आने वाली है।
निजी चिकित्सक आर-पार की लड़ाई को तैयार
क्लीनिकल एस्टेब्लिशमेंट एक्ट पर मुखर निजी चिकित्सक अब आर-पार की लड़ाई के मूड में आ गए हैं। आइएमए की राज्य शाखा की शुक्रवार को आपात बैठक आयोजित की गई। प्रांतीय महासचिव डॉ. डीडी चौधरी ने कहा कि सात सितम्बर को आइएमए पदाधिकारियों की मुख्यमंत्री से वार्ता होनी थी, पर उन्होंने मुलाकात नहीं की। उस पर स्वास्थ्य सचिव ने अपने एक बयान में कहा कि एक्ट में किसी भी तरह की रियायत नहीं दी जाएगी। इस स्थिति में सभी निजी अस्पताल 13 सितंबर से पहले अपने यहां भर्ती मरीजों को डिस्चार्ज कर देंगे। अगर सरकार 14 सितंबर तक हमारी मांगों को स्वीकार नहीं करती है, तो डायग्नोस्टिक केंद्रों सहित सभी निजी अस्पताल और क्लीनिक 15 सितंबर से बंद कर दिए जाएंगे। इनकी चाबियां स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों को सौंप दी जाएंगी।
उन्होंने कहा कि 50 बेड से कम के अस्पताल, क्लीनिक, डे केयर सेंटर व डायग्नोस्टिक सेंटर को एक्ट से छूट दी जाए। उपचार दर तय करने व डायग्नोस्टिक टेस्ट का अधिकार चिकित्सक व संस्थान को दिया जाए। डॉ. चौधरी ने कहा कि केवल जेनरिक दवा लिखना भी संभव नहीं है, क्योंकि सरकार का इसकी गुणवत्ता पर नियंत्रण नहीं है। अगर सरकार ऐसा चाहती है तो ब्रांडेड दवा बनाने वाली कंपनियों को अनुमति देना बंद कर दे।
स्वास्थ्य सचिव नितेश झा ने बताया कि क्लीनिकल एस्टेब्लिशमेंट एक्ट पर हाईकोर्ट का आदेश है। न्यायालय के आदेश का अनुपालन कराना हमारा दायित्व है। जहां तक सरकारी अस्पतालों के विशेषज्ञ चिकित्सकों का प्रकरण है, यह विषय एमसीआइ में रखा जाएगा। उनसे अनुरोध है कि पूर्व की भांति अपने दायित्वों का निर्वहन करते रहें।
डिग्री ही वैध नहीं तो कैसे करें काम
प्रांतीय चिकित्सा स्वास्थ्य सेवा संघ (पीएमएचएस) की शुक्रवार को चंद्रनगर में बैठक आयोजित की गई। संघ पदाधिकारियों ने कहा कि पीएमएचएस के उप्र के मेडिकल कॉलेजों से प्रशिक्षण प्राप्त विशेषज्ञ चिकित्सकों के मामले में शासन द्वारा कोई कदम नहीं उठाया जा रहा।
प्रांतीय अध्यक्ष डॉ. डीपी जोशी ने कहा कि गत वर्षो में उत्तराखंड के डॉक्टरों को विशेषज्ञता हासिल करने के लिए उत्तर प्रदेश के मेडिकल कॉलेजों में पीजी सीटें आवंटित की गई। इस व्यवस्था के तहत अब तक कुल 113 डॉक्टर उत्तर प्रदेश के मेडिकल कॉलेजों से पीजी डिप्लोमा कर चुके हैं, जबकि 19 अभी भी अध्ययनरत हैं। जिन मेडिकल कॉलेजों से डॉक्टरों ने पीजी किया, उन्होंने इन्हें गैर मान्यता वाली सीटों पर दाखिला दिया। यही कारण है कि अब डॉक्टरों की डिग्री को लेकर सवाल खड़े हो गए हैं।
वर्तमान में यह सभी चिकित्सक प्रदेश के विभिन्न अस्पतालों में सेवाएं दे रहे हैं। हाल ही में उत्तराखंड राज्य आयुर्विज्ञान परिषद ने इन डॉक्टरों को नोटिस जारी किए हैं। इनकी विशेषज्ञ के तौर पर प्रैक्टिस पर भी आपत्ति दर्ज की है। इसके अलावा एमसीआइ को पत्र भेज दिशा निर्देश भी मांगे गए हैं। मेडिकल काउंसिल ने मान्यता नहीं दी तो इन डॉक्टरों का पंजीकरण तक निरस्त हो सकता है।
उन्होंने कहा कि विशेषज्ञ चिकित्सा उपचार व मेडिकोलीगल कार्य में विधिक कठिनाईयों को देखते हुए ये चिकित्सक दस सितम्बर से विशेषज्ञ चिकित्सक का कार्य नहीं करेंगे। प्रांतीय महासचिव डॉ. दिनेश चौहान ने कहा कि सरकारी अस्पतालों में कार्यरत चिकित्सकों की न्यायोचित मांगें पिछले लंबे समय से शासन स्तर पर लंबित हैं। कई बार वार्ता के बाद भी इन मांगों का समाधान नहीं किया जा रहा है। सीएम द्वारा की गई घोषणाओं पर अमल करने में भी कोताही बरती जा रही है। जिससे डॉक्टरों में रोष व्याप्त है। इस दौरान डॉ. आनंद शुक्ला, डॉ. मेघना असवाल, डॉ. प्रियंका सिंह समेत सभी जनपदों के अध्यक्ष व सचिव मौजूद रहे।