धर्म-संसार

इस बार यहां दुर्गोत्सव पूजा में थीम है मां का मातृत्व, यह अपने आप में अनोखी व आकर्षक है

कोलकाता, जागरण संवाददाता। या देवी सर्वभूतेषु मातृ-रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥ सर्वज्ञानी देवी की जय हो देवी ब्रह्मांड में हर जगह विद्यमान हैं। यह कहना अनुचित न होगा कि भगवान ने मां को बनाया ताकि हर व्यक्ति उसे आर्शीवाद के रुप में उसे महसूस कर सके। यह अक्सर कहा जाता है कि पूत कपूत हो सकता है पर माता कुमाता नहीं हो सकती।

प्रचीन काल में इसके कई उदाहरण भी है। मां के इसी मातृत्व को इस वर्ष बराहनगर काशफूल दुर्गोत्सव पूजा कमिटी ने अपना थीम बनाया है। बराहननगर इलाके की आयोजित यह पूजा अपने आप में अनोखी व आकर्षक पूजा है। पूजा कमिटी की सचिव मौसमी भट्टाचार्य ने बताया कि इस वर्ष पूजा का पांचवां वर्ष है।

आश्चर्य की बात यह है कि इलाके की 10 महिलाएं अपने मासिक वेतन को बचा कर इस पूजा का आयोजन करती हैं। इस कारण इस पूजा का बजट भी काफी समिति और छोटा है। इस बार पूजा की थीम हैलो कोलकाता ने तैयार की है।

फिल्म निर्माता और लेखक और थीम मेकर आशीष बसाक ने कहा कि इस बार एम फैक्टर (मातृत्व) को थीम के रूप में चयन किया गया है। पूजा की थीम वास्तव में अभिनव विचार और पवित्रता के आवश्यक पहलुओं का संगम है। सूक्ष्म बजट पूजा का विषय होगा। 50/20 वर्गफीट की गली में स्थित गैरेज में मातृत्व की अराधना हो सकती है। महलों में विराजमान मां और फुटपाथ में रहने वाली मां का मातृत्व एक ही है, उसमें कोई अंतर नहीं यह थीम के माध्यम से दर्शाया जायेगा। बसाक ने कहा कि एम फैक्टर पर उन्होंने एक किताब तथा फिल्म भी बनायी है जो इस्लाम पर आधारित थी।

उन्होंने कहा कि पूजा पंडाल में 10 मूर्ति और वस्तुओं से मातृत्व को दर्शाया जायेगा। बराहनगर काशफूल’ के गठन में पेंटिंग्स और मॉडल होंगे जिसमें मदर-हूड, यीशु के साथ मैरी, नेमी के साथ सच्ची, कान्हाई के साथ यशोदा, मदर टेरेसा, भारत-माता सांप्रदायिक सद्भाव और अन्य विषयों से संबंधित हैं।

विभिन्न धर्म के व्यक्तियों की उनकी वेशभूषा में के बीच भारत माता को दर्शाने की तैयारी है। भारत की गोद में वे विराजमान होंगे। बसाक ने कहा कि थीम का अर्थ यह है कि मां का मातृत्व केवल अमीरों के लिए ही नहीं होता गरीब भी मां का मातृत्व पा सकते हैं। वे भी उनकी अराधना कर सकते हैं। थीम के माध्यम से असलियत को ही प्राथमिकता दी जा रही है। पूजा की छोटी परिस्थितियां उत्सव की भावना को कम नहीं करतीं।

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